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Friday, October 30, 2015

All India Radio - Akashvani: Sardar Patel - A Himalayan Vision for Friendship & Amity

All India Radio - Akashvani: Sardar Patel - A Himalayan Vision for Friendship & Amity

Thursday, October 29, 2015

भारत का अफ्रीकी योग --तरुण विजय

http://epaper.amarujala.com/svww_index.php
भारत का अफ्रीकी योग
तरुण विजय
पिछले वर्षों में अफ्रीकी देशों में 70 तख्तापलट और ′स्थानीय विद्रोहों′ की घटनाएं हुईं, तथा 13 से अधिक अफ्रीकी राष्ट्राध्यक्षों की क्रूर हत्याएं हुईं। अमेरिका और सोवियत संघ के शीतयुद्ध का भी अफ्रीका शिकार रहा। द्वितीय कांगो युद्ध में 50 लाख अफ्रीकी मारे गए, जबकि रवांडा के भयानक नरसंहार में आठ लाख अफ्रीकियों का कत्लेआम हुआ। एड्स जैसी बीमारियां भी वहां फैलीं।

भारत-अफ्रीकी शिखर सम्मेलन वैश्विक कूटनीति के क्षेत्र में भारत की शक्तिशाली एवं मैत्रीपूर्ण उपस्थिति का नया सरगम है, जिसके स्वर तनावग्रस्त क्षेत्रों में राहत का योग सिद्ध होंगे।

भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन में भारतीय वेशभूषा में अफ्रीकी नेताओं का दृश्य भारत की विदेश नीति की शिखर उपलब्धि का चटक रंग जमा गया। न सिर्फ इसलिए यह शिखर सम्मेलन असाधारण और अभूतपूर्व है, क्योंकि पहली बार भारत ने यह पहल की है, बल्कि इसलिए भी, कि सभी 54 अफ्रीकी देशों की इसमें भागीदारी है और 40 अफ्रीकी देशों के राष्ट्र प्रमुख उपस्थित हैं।
अफ्रीकी देशों के साथ भारत के दस्तावेजी प्रमाण सहित संबंध दो हजार साल से भी पुराने हैं। तब इथियोपिया के सम्राट को भारत के वस्त्र और स्वर्णाभूषण बहुत प्रिय थे और भारत के व्यापारी बड़ी तादाद में वहां व्यापार करते थे। पिछले दिनों मैं इथियोपिया गया था। वहां के न केवल वास्तुशिल्प, बल्कि जेवरों पर होनेवाली मीनाकारी में भी भारत की पहचान को वहां की सरकार सम्मान सहित स्वीकार करती है। मिस्र के साथ भारत का व्यापार ईसा सदी पूर्व से चलता रहा। यूनानी इतिहासकार स्राबो ने 130 ईसा पूर्व भारत से 120 समुद्री जहाजों में आई विभिन्न सामग्रियों का जिक्र किया है। मुंबई और गोवा गुजराती व्यापारियों द्वारा अफ्रीका में सामान भेजे जाने के महत्वपूर्ण केंद्र थे। फिर महात्मा गांधी का अफ्रीका के साथ संबंध समसामयिक भारत का अफ्रीकी देशों के साथ सबसे बड़ा और मजबूत सेतु है।
लेकिन बीच का कालखंड ऐसा बीता, जिसमें भावनात्मक जुड़ाव भले ही रहा हो, पर कूटनीतिक और आर्थिक संबंध लगभग ठंडे ही रहे। जहां भारत-अफ्रीका व्यापार लगभग 70 अरब डॉलर तक पहुंच पाया, वहीं चीन ने देरी से अफ्रीका की ओर ध्यान देकर उसके साथ 200 अरब डॉलर के व्यापार का स्तर हासिल कर लिया। न केवल वह अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना, बल्कि अफ्रीका में अपना सामान बेचने की दृष्टि से भी वह सबसे आगे है। सस्ते चीनी कपड़े, गाड़ियां और अफ्रीकी ढांचागत निर्माण कार्यों में चीन का पैसा अफ्रीका को लुभाता ही है।
इस परिदृश्य में भारत के स्वाभाविक और शताब्दियों पुराने मित्र अफ्रीकी महाद्वीप की ओर प्रधानमंत्री ने पहल करके यह शिखर सम्मेलन आयोजित कर भारत-अफ्रीकी संबंधों में एक नए अध्याय की शुरुआत की है। पहली बार अफ्रीकी राष्ट्राध्यक्षों ने भारतीय प्रधानमंत्री के साथ सुरक्षा और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श किया और आतंकवाद ग्रस्त अफ्रीकी महाद्वीप की सुरक्षा के लिए भारत से सामरिक संबंध बढ़ाने की अपेक्षा की। वरना अभी तक शिक्षा, कृषि और स्वास्थ्य जैसे विषयों पर ही भारत-अफ्रीकी संबंध सीमित रहते थे। अफ्रीकी देश बोको हरम तथा आईएस जैसे आतंकवादी संगठनों से संत्रस्त हैं। पूर्वी अफ्रीका में सोमालिया केंद्रित आतंकवादी गुट अल शवाब पिछले वर्ष केन्या के नगरों और गांवों में आक्रमण कर 200 लोगों की हत्या करने का दोषी है। पश्चिमी अफ्रीका में बोको हरम ने एक वर्ष में 5,000 अफ्रीकियों को मार डाला। चिबोक शहर में 276 छात्राओं के अपहरण और उनके शारीरिक शोषण की भयावह घटना ने सारे विश्व को स्तब्ध कर दिया था। हालांकि अमेरिका ने ट्रांस सहारा आतंकवाद विरोधी साझेदारी में अल्जीरिया, कैमरून, मोरक्को, नाइजीरिया और ट्यूनीशिया जैसे 11 देशों के साथ कार्रवाई शुरू की, पर वह आतंकवाद के बढ़ते विस्तार के सामने अप्रभावी सिद्ध हुई। 
भारत की विश्व स्तरीय उपस्थिति और आर्थिक हितों के लिए अफ्रीकी महाद्वीप के देशों के साथ गहन संबंध बहुत आवश्यक हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक दृष्टि ने अफ्रीका के साथ संबंध बढ़ाने की जो पहल की है, उनमें जहां सामरिक एवं रक्षा समझौते महत्वपूर्ण हैं, वहीं मानव संसाधन विकास, सूचना-प्रौद्योगिकी, ढांचागत सुविधाओं का निर्माण, स्वच्छ ऊर्जा, शैक्षिक एवं शोध के संस्थानों की स्थापना, कौशल विकास तथा कृषि एजेंडे पर मुख्य बिंदु हैं। भारत का निवेश, जो आज 30 से 35 अरब डॉलर के दायरे में है, बढ़ाकर 100 अरब डॉलर तक ले जाना आर्थिक संबंधों की दृष्टि से अफ्रीका को पुनः भारत से जोड़ सकता है।
अधिकांश अफ्रीकी देश यूरोपीय उपनिवेशवाद और गोरों के नस्लीय भेदभाव के शिकार रहे। वहां अस्थिरता, भ्रष्टाचार, हिंसा तथा एकतंत्रवादी तानाशाही का बोलबाला सामान्य जनता के विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। अधिकांश अफ्रीकी देश ऐसे गणतंत्र हैं, जो किसी न किसी प्रकार की राष्ट्रपति केंद्रित व्यवस्था के अंतर्गत चल रहे हैं। अनेक देशों में विभिन्न नस्ल एवं कबीलों में बंटे गुटों में आपसी हिंसक शत्रुता लगभग युद्ध जैसी स्थिति की निरंतरता बनाए रखती है। पिछले वर्षों में अफ्रीकी देशों में 70 तख्तापलट और ′स्थानीय विद्रोहों′ की घटनाएं हुईं, तथा 13 से अधिक अफ्रीकी राष्ट्राध्यक्षों की क्रूर हत्याएं हुईं। अमेरिका और सोवियत संघ के शीतयुद्ध का भी अफ्रीका शिकार रहा। द्वितीय कांगो युद्ध में 50 लाख अफ्रीकी मारे गए, जबकि रवांडा के भयानक नरसंहार में आठ लाख अफ्रीकियों का कत्लेआम हुआ। एड्स जैसी बीमारियां भी वहां फैलीं।
यह परिदृश्य मानवीय दृष्टि से भी अफ्रीकी देशों के प्रति भारत की अधिक बड़ी एवं सार्थक भूमिका की मांग करता है। भारत का अधिकांश ध्यान यूरोप तथा मध्य पूर्व की ओर रहा तथा पिछले दो दशकों से पूर्वी एशिया की ओर भारत की विदेश नीति केंद्रित हुई। अब अफ्रीकी देशों की ओर भारत की दृष्टि और कर्मशीलता का बढ़ना न केवल भारतीय उपमहाद्वीप के देशों के लिए, बल्कि क्षेत्रीय शक्ति संतुलन और अफ्रीकी देशों की निश्छल सौहार्दपूर्ण भारत नीति के ऋण से उऋण होने का भी विराट प्रयास है। भारत-अफ्रीकी शिखर सम्मेलन वैश्विक कूटनीति के क्षेत्र में भारत की शक्तिशाली एवं मैत्रीपूर्ण उपस्थिति का नया सरगम है, जिसके स्वर तनावग्रस्त क्षेत्रों में राहत का योग सिद्ध होंगे।
-लेखक भाजपा के राज्यसभा सांसद हैं 
भारत-अफ्रीकी शिखर सम्मेलन वैश्विक कूटनीति के क्षेत्र में भारत की शक्तिशाली एवं मैत्रीपूर्ण उपस्थिति का नया सरगम है। पहली बार अफ्रीकी राष्ट्राध्यक्षों ने भारत के साथ सुरक्षा और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श किया।

Tuesday, October 20, 2015

Tarun Vijay's first Tamil column begins on TOI's Samayam.com

வட இந்தியாவில் விருப்பப் பாடமாக தமிழை அறிமுகப்படுத்த வேண்டும்




நாடாளுமன்றத்தில் நான் பேசுகையில், திருவள்ளுவர் தினத்தை ‘இந்திய மொழிகள்’ நாளாக கொண்டாட வேண்டும் என்று கூறியதை கட்சி வேறுபாடின்றி அனைவரும் வரவேற்றனர். இதுதான் இந்திய ஜனநாயகத்தின் சிறப்பு. அனைத்து இந்திய மொழிகளுக்கும் மரியாதை அளிக்கும் வகையில் வட மாநிலங்களிலும் திருக்குறளை அறிமுகப்படுத்த வேண்டும் என்று நான் வலியுறுத்தியதை அனைவரும் ஏற்றுக் கொண்டனர்.
தேசிய ஒருமைப்பாட்டை வலுப்படுத்தும் வகையில் வடஇந்தியப் பள்ளிகளில் தமிழை விருப்பப்பாடமாக அறிமுகப்படுத்த வேண்டும்.
திருவள்ளுவர் மற்றும் சுப்ரமணிய பாரதியின் வாழ்க்கை குறிப்புகளை பாடமாக சேர்க்க மற்றும் அவர்களது பிறந்த நாளை வட இந்தியப் பள்ளிகளில் கொண்டாடவும் மத்திய மனித வளத்துறை அமைச்சர் ஸ்மிருதி ஈரானி ஒப்புக் கொண்டுள்ளார்.
சமீபத்தில் பல்கலைக் கழக மானியக் குழு  இவர்கள் தொடர்பான கட்டுரைப் போட்டிகளை நடத்தி இருந்தது.
பழமையான தமிழ் மொழியை வணங்கி எனது முதல் கட்டுரையை முடிக்கிறேன்.
எழுதியவர் – தருண் விஜய் (பாஜக எம்.பி.,)
(உத்தரகண்ட்டில் இருந்து மாநிலங்களவைக்கு தேர்வு செய்யப்பட்டவர் தருண் விஜய். தமிழுக்கு இவர் ஆற்றி வரும் சேவையைப் பாராட்டி இவருக்கு கடந்தாண்டு மலேசிய தமிழ் இலக்கிய அமைப்பு விருது வழங்கியதை அடுத்து, ”திருக்குறளின் தூதர்’ என்று இவர் அழைக்கப்படுகிறார்.
இந்திய, சீன நண்பர்கள் அமைப்பின் தலைவராகவும், ராணுவத்துக்கான நாடாளுமன்ற நிலைக்குழு கமிட்டியின் உறுப்பினராகவும், மாணவர்கள் மற்றும் இளைஞர்களுக்கான திருவள்ளுவர் அமைப்பின் தலைவராகவும் உள்ளார்.)
தமிழில்: தனலட்சுமி.G.
மறுப்பு : மேலே கூறிய கருத்துக்கள் ஆசிரியரின் சொந்தக் கருத்து

अचानक ऐसा माहौल बना दिया , मानो हिंदू क्रूर हैं। हिंदू आज पुनः सेक्यूलर आघातों का शिकार हो रहा है।


Daily Amar Ujala, 19th October 2015, page 13, main edit page article

यदि सेक्यूलर अपने ′बीफ विचारों′ के प्रति इतने ही आश्वस्त हैं, तो बिहार, उत्तर प्रदेश के चुनावों में घोषित कर दें कि उनकी सरकार यदि आई, तो गोमांस सर्वसुलभ कर देगी। फिर नतीजे देख लें। हमें यह समझना होगा कि मोदी सरकार को मिले असाधारण और अभूतपूर्व बहुमत से बौखलाए वर्ग द्वारा यह हरसंभव प्रयास किया जाएगा कि सामाजिक वातावरण ऐसा विषाक्त हो जाए, जिससे मोदी सरकार पर प्रहार किया जा सके। 
इन विवादों में उलझने के बजाय देश के हित में विकास एवं निर्माण क्षेत्र की मजबूती में जुटना सबसे बड़ी गौ-सेवा एवं भारत सेवा होगी।

उदार हुए बिना कैसे हिंदू
तरुण विजय


विकास और पूंजी निवेश की बात करते-करते अचानक ऐसा माहौल बना दिया गया है, मानो इस देश के हिंदू क्रूर और लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाकर लोगों के खान-पान में भी बाधा डालने वाले हैं।


यदि कोई हिंदू ऐसी किसी हिंसा का समर्थन करता है, अथवा सार्वजनिक समाज में अभद्रता और हिंसा का सहारा लेता है, तो वह अपने हिंदूपन से च्युत हो जाता है। हिंदू होने का अर्थ ही है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और वैचारिक निर्बंधता में विश्वास करना।

गुलाम अली और कसूरी के कार्यक्रमों की अनुमति भाजपा नीत प्रदेश सरकार ने ही दी थी। भारत उस वर्ग में नहीं खड़ा होना चाहेगा, जहां संगीत को आक्रमण झेलना पड़े। पाकिस्तान में ऐसा होता है। लेकिन वह हमारा आदर्श नहीं हो सकता। जिससे हम सहमत नहीं भी हैं, उसे भी यदि अपनी बात कहने का कोई स्थान मिलना चाहिए, तो वह भारत ही हो सकता है।

देश का एक वर्ग, जो स्वयं को सेक्यूलर कहता है, और अंग्रेजी मीडिया में छाया हुआ है, वह हिंदू भावनाओं को आहत करना ही सेक्यूलरवाद की कसौटी मान बैठा है। जिस देश में कृष्ण को गोपाल कहकर पूजा जाता है, और जहां करोड़ों ऐसे हिंदू रहते हैं, जो गाय को अपनी मां के समान मानते हैं, वहां गाय को निशाना बनते देखना अपनी जननी पर आक्रमण के समान माना जाता है। क्या हिंदू अपने देश में अपनी भावनाओं के सम्मान की अपेक्षा नहीं कर सकते?



विश्व में यदि सर्वप्रथम किसी जाति और समाज ने उदार चरितानाम वसुधैव कुटुम्बकम कहा, तो वह हिंदू ही है। उदार हुए बिना आप हिंदू कैसे हो सकते हैं? इसी उदार हिंदू ने उन सेक्यूलर आघातों से परेशान होकर छद्म सेक्यूलरवाद शब्द गढ़ा, जिन आघातों ने हिंदू विरोध को ही सेक्यूलर होने का पर्याय बना दिया था। इसी माहौल का परिणाम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को अभूतपूर्व जन समर्थन में मिला। अपने हिंदू होने के प्रति क्षमा भाव न रखने वाला हिंदू आज पुनः सेक्यूलर आघातों का शिकार हो रहा है।
विकास और पूंजी निवेश की बात करते-करते अचानक ऐसा माहौल बना दिया गया है, मानो इस देश के हिंदू क्रूर और लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाकर लोगों के खान-पान में भी बाधा डालने वाले हैं। दादरी कांड, गुलाम अली के गायन कार्यक्रम और कसूरी की पुस्तक के विमोचन पर हुआ हंगामा तथा कुछ लेखकों की घृणित हत्या की घटनाओं से मीडिया एवं सार्वजनिक समाज के अन्य माध्यमों पर छाए कुछ लोगों ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि ये घटनाएं उन प्रदेश सरकारों से संबंधित नहीं है, जहां ये घटी हैं, बल्कि इन सबकी जिम्मेदारी दिल्ली में मोदी सरकार और हिंदू संगठनों की है।
यह एक विद्रूप भरी स्थिति है। यदि कोई हिंदू ऐसी किसी हिंसा का समर्थन करता है, अथवा सार्वजनिक समाज में अभद्रता और हिंसा का सहारा लेता है, तो वह अपने हिंदूपन से च्युत हो जाता है। हिंदू होने का अर्थ ही है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और वैचारिक निर्बंधता में विश्वास करना।
दादरी कांड के संबंध में मैंने कहा था कि इकलाख की बेटी का दुख हमारी अपनी बेटी के दुख जैसा महसूस होता है। किसी को भी किसी भी स्थिति में कानून अपने हाथ में लेने अथवा भीड़ का न्याय अपनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। लेकिन इसे भी प्रताप भानु मेहता जैसे लेखक ने तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया। गुलाम अली और कसूरी के कार्यक्रमों की अनुमति भाजपा नीत प्रदेश सरकार ने ही दी थी। भारत उस वर्ग में नहीं खड़ा होना चाहेगा, जहां संगीत को आक्रमण झेलना पड़े। पाकिस्तान में ऐसा होता है। लेकिन वह हमारा आदर्श नहीं हो सकता। जिससे हम सहमत नहीं भी हैं, उसे भी यदि अपनी बात कहने का कोई स्थान मिलना चाहिए, तो वह भारत ही हो सकता है।
भारत के हिंदू दुनिया भर में जाते हैं और उन होटलों में भी अपनी पसंद का या शाकाहारी खाना खाते हैं, जहां गोमांस बनता है। स्वामी विवेकानंद ने अपनी पुस्तक प्राच्य और पाश्चात्य में हिंदुओं के खान-पान संबंधी तीव्र मतों पर कठोर प्रहार किया है। भारत के जो संत और भिक्षु धर्म प्रचार के लिए विश्व भर में गए, वे यदि खान-पान के संबंध में इतनी तीव्रताएं व्यवहार में लाते, तो क्या चीन, जापान, कोरिया जैसे देशों में बौद्ध मत एवं हिंदू सनातन विचार का प्रसार हो पाता? सामिष और निरामिष का द्वंद्व बहुत पुराना है, और यह सदैव व्यक्तिगत पसंद और नापसंद का ही विषय बने रहना चाहिए।
देश का एक वर्ग, जो स्वयं को सेक्यूलर कहता है, और अंग्रेजी मीडिया में छाया हुआ है, वह हिंदू भावनाओं को आहत करना ही सेक्यूलरवाद की कसौटी मान बैठा है। जिस देश में कृष्ण को गोपाल कहकर पूजा जाता है, और जहां करोड़ों ऐसे हिंदू रहते हैं, जो गाय को अपनी मां के समान मानते हैं, वहां गाय को निशाना बनते देखना अपनी जननी पर आक्रमण के समान माना जाता है। क्या हिंदू अपने देश में अपनी भावनाओं के सम्मान की अपेक्षा नहीं कर सकते?
कुछ लोगों द्वारा साहित्य अकादेमी पुरस्कार भी लौटाए जा रहे हैं। क्या वे इस बात का जवाब देंगे कि देश में क्या 1984 के सिख दंगों से भी ज्यादा भयानक स्थिति आ गई है? उस समय ये लोग खामोश रहे। तब भी इन लोगों की आत्मा नहीं तड़पी, जब करीब पांच लाख हिंदुओं को अपमानित एवं उनकी स्त्रियों को जलील कर कश्मीर से निकलने के लिए मजबूर किया गया, या जब देश के सैनिक, साधारण अध्यापक और किसान नक्सलियों के हाथों मारे जाते हैं। उनकी पुरस्कार वापसी घटिया राजनीति ही है।
इसी प्रकार पानसारे और कलबुर्गी जैसे लेखकों की हत्या भर्त्सना योग्य है। हालांकि लोग नहीं जानते कि कलबुर्गी ने अपने लेखों और भाषणों में अपनी दृष्टि से अंधविश्वास पर हमला करते हुए कई बार सीमाएं भी लांघी हैं। इसका कुछ विरोध हुआ, लेकिन फिर भी यदि ऐसे कथन पर आपत्ति है, तो सहारा केवल कानून का ही लिया जाना चाहिए। दुर्भाग्य से स्वयं को सेक्यूलर कहने वाले वर्ग ने पिछले छह दशकों से हर बौद्धिक संस्थान, मीडिया घरानों के स्तंभों तथा शासकीय केंद्रों से संचालित शिक्षा माध्यमों से स्टालिन की मानसिकता दिखाते हुए राष्ट्रीयता की विचारधारा से जुड़े लोगों को अस्पृश्य बनाए रखना। उनकी मठाधीशी अब खत्म हो रही है, तो उन्हें बौखलाहट में केवल मोदी पर हमला ही सूझ रहा है।
यदि सेक्यूलर अपने ′बीफ विचारों′ के प्रति इतने ही आश्वस्त हैं, तो बिहार, उत्तर प्रदेश के चुनावों में घोषित कर दें कि उनकी सरकार यदि आई, तो गोमांस सर्वसुलभ कर देगी। फिर नतीजे देख लें। हमें यह समझना होगा कि मोदी सरकार को मिले असाधारण और अभूतपूर्व बहुमत से बौखलाए वर्ग द्वारा यह हरसंभव प्रयास किया जाएगा कि सामाजिक वातावरण ऐसा विषाक्त हो जाए, जिससे मोदी सरकार पर प्रहार किया जा सके। इन विवादों में उलझने के बजाय देश के हित में विकास एवं निर्माण क्षेत्र की मजबूती में जुटना सबसे बड़ी गौ-सेवा एवं भारत सेवा होगी।

Monday, October 19, 2015

Great Soldiers' Gate , a memorial to “Ayo Gorkhali” approved by Tarun Vijay in Dehradun cantt


http://timesofindia.indiatimes.com/india/Gorkhali-Sudhar-Sabha-felicitates-Rajya-Sabha-member-Tarun-Vijay/articleshow/49459192.cms
Gorkhali Sudhar Sabha felicitates Rajya Sabha member Tarun Vijay
An Auditorium and a Memorial to “Ayo Gorkhali” approved
19th October, 2015, Dehradun

Mr. Tarun Vijay, Member of Parliament, Rajya Sabha from Uttarakhand was warmly greeted and felicitated by the most reputed Gorkha Social Organisation Gorkhali Sudhar Sabha (established in 1934).  The President of Gorkhali Sudhar Sabha, Col. P.S. Chhetri (retd.) presented a traditional Bejewelled Khukri- the traditional lethal weapon of the Charging Gorkha to Shri Tarun Vijay and said that he is the first M.P. to give Rs. 2 crores for erecting a grand war memorial to the warriors of the State and also he has  agreed to have an auditorium for Gorkhali Sudhar Sabha.  In his acceptance speech, Shri Tarun Vijay said that the Gorkhas are synonymous  with valour and victory.   Wherever Gorkha soldiers strike,  victory follows them.  He announced Rupees Ten Lakhs from MPLADS funds to build an auditorium for Gorkhali Sudhar Sabha.  He also announced a massive “the Great Soldier Gate” at the entry point to the cantt. area. of Dehradun and a memorial to the Gorkha soldiers-“Ayo Gorkhali” in commemoration of the completion of 100 years of Gorkha Regiment in Dehradun.