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Tuesday, August 3, 2010

डेली न्यूज़


Tuesday, August 03, 2010

कब तक ढोते रहेंगे गुलामी

भारत यात्रा के दौरान ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून ने स्पष्ट किया कि वे यह कहने में कुछ शर्म महसूस नहीं कर रहे हैं कि उनकी भारत यात्रा केवल आर्थिक कारणों से यानी वे यहां बाजार ढूंढने आए थे और कई हजार करोड़ का सौदा ब्रिटिश हित में लेकर लौटे हैं। ब्रिटेन में 20 लाख भारतीय मूल के लोग हैं तथा दोनों देशों के बीच साढ़े ग्यारह अरब पौंड का व्यापार है। ब्रिटेन में आज सबसे बड़ी उत्पादक-रोजगार प्रदाता कंपनी टाटा समूह है। कैमरून ने भारत में यह भी कहा कि जहां पहले लोग प्रतिष्ठा अर्जित करने के लिए कहते थे कि पश्चिम की ओर जाओ, वह स्थिति आज बदल चुकी है। अब लोग कहते हैं कि अगर तरक्की और समृद्धि पानी है, तो पूरब की ओर जाओ।

यह सब तो ठीक है, लेकिन जिन दिनों डेविड कैमरून भारत आए, उन दिनों संसद महंगाई के कारण ठप रही। योजनाकारों की रपट है कि भारत में 42 प्रतिशत से अधिक लोग 20 रूपये प्रतिदिन की आय पर गुजारा कर रहे हैं। 28 प्रतिशत से अधिक लोग सिर्फ किसी तरह जिंदा हैं और इसलिए वे गरीबी रेखा से नीचे कहे जाते हैं। 60 हजार से अधिक भारतीय नागरिक जिहादी आतंकवाद के कारण मारे जा चुके हैं, 12 हजार से अधिक किसान, मजदूर तथा सुरक्षाकर्मी माओवादी आतंकवाद के शिकार हो चुके हैं। भारत का एक लाख 25 हजार वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र 1947 के बाद चीन और पाकिस्तान के कब्जे में चला गया है। पूर्वाचल के नगालैंड और मणिपुर जैसे प्रांतों में आतंकवादी विद्रोही गतिविधियां तीव्रता से बढ़ रही हैं। श्रीनगर से कोहिमा और इंफाल तक सार्वजनिक स्थानों पर निरापद स्थिति में तिरंगा फहराना, गांधी की प्रतिमा स्थापित करना या राष्ट्रीय गीत का गायन लगभग असंभव माना जाता है। विडंबनाजनक हालत यह है कि यदि कोई लाल चौक पर तिरंगा फहरा आए, तो उसका दिल्ली में ऎसा स्वागत किया जाता है, मानो वह कारगिल युद्ध जीत आया हो। 67 दिन तक मणिपुर में भयानक राजमार्ग रूकावट रही और 12 जनवरी से वहां के 50 हजार सरकारी कर्मचारी कलम रोको हड़ताल पर रहे, लेकिन दिल्ली में कहीं भी इस बात को लेकर न सुगबुगाहट हुई, न किसी क्षेत्र में असंतोष उपजा। उलटे दृश्य यह देखने को आ रहे हैं कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बावजूद अफजल गुरू को फांसी नहीं दी जा रही है। एक दुष्टात्मा की एनकाउंटर में मृत्यु के लिए न केवल पुलिस अफसरों को जेल में डाल दिया गया है, बल्कि गुजरात के गृहमंत्री को गिरफ्तार कर मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए संवैधानिक संस्थानों का दुरूपयोग करते हुए गुजरात पर युद्ध जैसा ही बोल दिया है।

इतनी अधिक अराजकता इस देश में अंग्रेजों के आने से पहले कभी नहीं थी। आमतौर पर भ्रष्टाचार तथा गरीबी भारत में कहीं भी कभी भी देखने को नहीं मिलती थी। यदि यह कहा जाए कि गरीबी, सामान्य राजनीति और प्रशासनिक भ्रष्टाचार अंग्रेजों की देन है, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मुंबई के प्रसिद्ध प्रकाशक और व्यवसायी शानबाग लेखकों और साहित्यकारों में काफी प्रसिद्ध रहे हैं। फोर्ट में उनकी पुस्तकों की दुकान स्ट्रेंड बुक स्टाल एक ग्रंथ तीर्थ ही माना जाता है। अपने देहांत से पहले शानबाग ने भारतीय संपदा और पाठकों पर बड़ा उपकार किया, जब उन्होंने विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार एवं चिंतक विल डूरा की दुर्लभ एवं लुप्तप्राय पुस्तक "द केस फॉर इंडिया" का पुन: प्रकाशन किया। यह पुस्तक अंग्रेजों द्वारा भारत की लूट ही नहीं, बल्कि भारत के प्राचीन संस्कारों, विद्या और चरित्र पर इतिहास के सबसे बड़े आक्रमण का तथ्यात्मक वर्णन करती है। इसमें उन्होंने लिखा है कि भारत केवल एक राष्ट्र ही नहीं था, बल्कि सभ्यता, संस्कृति और भाषा में विश्व का मातृ संस्थान था। भारतभूमि हमारे दर्शन, संस्कृति और सभ्यता की मां कही जा सकती है। विश्व का ऎसा कोई श्रेष्ठता का क्षेत्र नहीं था, जिसमें भारत ने सर्वोच्च स्थान न हासिल किया हो। चाहे वह वस्त्र निर्माण हो, आभूषण और जवाहरात का क्षेत्र हो, कविता और साहित्य का क्षेत्र हो, बर्तनों और महान वास्तुशिल्प का क्षेत्र हो अथवा समुद्री जहाज का निर्माण क्षेत्र हो, हर क्षेत्र में भारत ने दुनिया को अपना प्रभाव दिखाया।

जब अंग्रेज भारत आए, तो उन्होंने राजनीतिक दृष्टि से कमजोर, लेकिन आर्थिक दृष्टि से अत्यंत वैभव और ऎश्वर्य संपन्न भारत को पाया। ऎसे देश में अंग्रेजों ने धोखाधड़ी, अनैतिकता एवं भ्रष्टाचार के माध्यम से राज्य हड़पे, अमानुषिक टैक्स लगाए, करोड़ों को गरीबी और भुखमरी के गर्त में धकेला तथा भारत की सारी संपदा व वैभव लूटकर ब्रिटेन को मालामाल किया। उन्होंने मद्रास, कोलकाता और मुंबई में हिंदू शासकों से व्यापारिक चौकियां भाड़े पर लीं और बिना अनुमति के वहां अपनी तौपें और सेनाएं रखीं। 1756 में बंगाल के राजा ने इस प्रकार के आक्रमण का जब विरोध किया और अंग्रेजों के दुर्ग फोर्ट विलियम पर हमला करके उस पर कब्जा कर लिया, तो एक साल बाद रॉबर्ट क्लाइव ने प्लासी के युद्ध में बंगाल को हराकर उस पर कब्जा कर लिया और एक नवाब को दूसरे से लड़ा कर लूट शुरू कर दी। सिर्फ एक साल में क्लाइव ने 11 लाख 70 हजार डॉलर की रिश्वत ली और 1 लाख 40 हजार डॉलर सालाना नजराना लेना शुरू किया। जांच में उसे गुनहगार पाया गया, लेकिन ब्रिटेन की सेवा के बदले उसे माफी दे दी गई। विल ड्यूरा लिखते हैं कि भारत से 20 लाख का सामान खरीद कर ब्रिटेन में एक करोड़ में बेचा जाता है। अंग्रेजों ने अवध के नवाब को अपनी मां और दादी का खजाना लूट कर अंग्रेजों को 50 लाख डॉलर देने पर मजबूर किया फिर उस पर कब्जा कर लिया और 25 लाख डॉलर में एक दूसरे नवाब को बेच दिया।

अंग्रेजी भाषा चलाने और अंग्रेजों के प्रति दासता मजबूत करने के लिए भारतीय विद्यालय बंद किए गए। 1911 में गोपालकृष्ण गोखले ने संपूर्ण भारतवर्ष में प्रत्येक भारतीय बच्चे के लिए अनिवार्य प्राइमरी शिक्षा का विधेयक लाने की कोशिश की, लेकिन उसे अंग्रेजों ने विफल कर दिया। 1916 में यह विधेयक फिर से लाने की कोशिश की, ताकि संपूर्ण भारतीयों को शिक्षित किया जा सके, लेकिन इसे भी अंग्रेजों ने विफल कर दिया। भारतीय सांख्यिकी के महानिदेशक सर विलियम हंटर ने लिखा है कि भारत में 4 करोड़ लोग ऎसे थे, जो कभी भी अपना पेट नहीं भर पाते थे। भूख और गरीबी की ओर धकेल दिए गए समृद्ध भारतीय शारीरिक दृष्टि से कम0जोर होकर महामारी के शिकार होने लगे। 1901 में विदेश से आए प्लेग के कारण 2 लाख 72 हजार भारतीय मर गए, 1902 में 50 लाख भारतीय मरे, 1903 में 8 लाख भारतीय मारे गए और 1904 में 10 लाख भारतीय भूख, कुपोषण और प्लेग जैसी महामारी के कारण मारे गए। 1918 में 12 करोड़ 50 लाख भारतीय इनफ्लूएंजा रोग के शिकार हुए, जिनमें से 1 करोड़ 25 लाख लोगों की मौत सरकारी तौर पर दर्ज हुई। समान काम के लिए अंग्रेजों को भारतीयों से 10 गुना ज्यादा वेतन दिया जाता था और अंग्रेजों से 10 गुना अधिक विद्वान भारतीय को उनकी योग्यता के अनुरूप पद नहीं दिया जाता था।

अंग्रेज भारत से कोहिनूर और सरस्वती प्रतिमा चुरा कर ले गए। फिर भी आज तक ब्रिटिश महारानी और न ही ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने अपने पूर्वजों के कुकृत्यों और अपराध के लिए भारत की जनता से क्षमा मांगने की सभ्यता दिखाई। भारतीय जनता के खून-पसीने की कमाई ब्रिटिश उपनिवेशवाद की याद में खर्च की जा रही है। इसका उदाहरण हैं राष्ट्रमंडल खेल। यह सब अंग्रेजों की देन है, जिसे काले अंग्रेज गौरव के साथ जारी रखे हुए हैं। इसलिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री को भारत यात्रा के समय यह तथ्य स्मरण कराना जरूरी है। वर्तमान शासन भी अंग्रेजों से कम जुल्म ढहाने वाला नहीं है।

तरूण विजय
(लेखक राज्यसभा सदस्य हैं)

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